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कुशीनगर में धीमी हो गयी अखिलेश के विजय रथ की रफ्तार

आदित्य कुमार दीक्षित
द चेतक न्यूज

कुशीनगर : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के विजय रथ का पहिया शनिवार को कुशीनगर में थमता हुआ दिखाई दिया। शनिवार को गोरखपुर से अपने विजय रथ यात्रा की शुरुआत करने वाले अखिलेश यादव के कुशीनगर में पँहुचने के बाद जनता कम होती गयी, इससे अखिलेश के विजय रथ की रफ्तार कम होती दिखी। अखिलेश यादव के विजय रथ की कुशीनगर में नाकामयाबी की सबसे बड़ी वजह समय का समीकरण भी रहा। अखिलेश यादव की सभा कुशीनगर जिले के पडरौना नगर में अपरान्ह 3 बजे होनी थी जबकि अखिलेश वहां रात को 8 बजे पँहुचे, इससे जो बHई कार्यकर्ता वहां अपने नेता को सुनने के लिए सुबह से एकत्रित हुए थे उनके हाथ निराशा लगी और उन्हें अखिलेश को बिना सुने ही बैरंग लौटना पड़ा।

सपा प्रमुख व सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विजय रथ को लेकर सपा कार्यकर्ता भले ही उत्साहित हो, लेकिन कुशीनगर में आम जनमानस में इस चुनावी रथयात्रा का कोई खास असर देखने को नहीं मिला, इसका एक बहुत बड़ा कारण स्थानीय नेताओं का कार्यक्रम को लेकर मैनेजमेंट का अभाव भी रहा। चर्चा यह भी है कि इस कार्यक्रम को विफल करने में पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का भी हाथ है।

आगामी वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की समाजवादी विजय यात्रा के तीसरे चरण के समापन के पहले दिन 13 नवंबर को ही निराशा हाथ लगी।

विदित हो कि अखिलेश के चुनावी विजय रथ यात्रा के तीसरे चरण का शुभारंभ सीएम योगी के गढ गोरखपुर से शुरू होकर कुशीनगर मे समाप्त होना है, दो दिवसीय इस रथयात्रा के तहत 13 नवम्बर को सपा मुखिया गोरखपुर एयरपोर्ट से कुसम्ही, जगदीशपुर, सोनबरसा होते हुए कुशीनगर जिले में पँहुचे तथा जनपद आगमन पर सबसे पहले उन्होंने राधेश्याम सिंह जी क्षेत्र हाटा विधान सभा के झांगा बाजार में जनसभा को संबोधित किया।

आमतौर पर देखा जाए तो अखिलेश की सभा में सबसे बड़ी भीड़ झांगा बाजार में ही देखने को मिली, इसके बाद जैसे-जैसे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रथ का पहिया आगे बढता गया, जनता कम होती गयी। नतीजा यह रहा कि पडरौना नगर में सुबह से ही अपने नेता का इन्तजार कर रही भीड़ अखिलेश के आने में देरी को भाँपकर अपने घर की तरफ प्रस्थान कर गयी।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव का रथ काफी विलम्ब से रामकोला विधान सभा के कप्तानगंज कस्बा में एलआईसी चौराहा पर पंहुचा, जबकि उन्हें यहां दोपहर एक बजे ही सभा को संबोधित करना था, यहां से उन्होंने खड्डा विधान सभा क्षेत्र के रामबाग होते पकड़ियार बाजार में आयोजित स्वागत समारोह को संबोधित किया लेकिन यहां भी अनुमान के हिसाब से सभा शुरू होने में हुई देरी के कारण न तो कार्यकर्ताओं में वह जोश दिखा और न ही जनता-जनार्दन की भीड का ठिकाना रहा। दोपहर के ढाई बजे के करीब सपा मुखिया को नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास जनसभा को संबोधित करना था लेकिन सूर्य ढलने के बाद जब उनका रथ वहां पंहुचा तो वहां भी आम जनता की तरह कार्यकर्ताओ मे जोश का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। अपरान्ह 3 बजे ही पडरौना पँहुचने वाला अखिलेश यादव का रथ देर शाम लगभग 8 बजे पडरौना के बावली चौक पर पंहुचा और वहां उपस्थित जनसमूह को अखिलेश यादव ने संबोधित किया। इसके बाद उनका रथ कुशीनगर जाकर ठहर गया, जहां वह एक होटल में रात्रि विश्राम करेंगे और उसके बाद रविवार को तमकुही और कसया विधानसभा में भ्रमण के बाद विजय रथयात्रा का समापन कर लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे।

चुनाव में विजय प्राप्ति के लिए मुलायम ने भी निकाली थी रथयात्रा

अखिलेश की चुनावी रथयात्रा को सपा नेता सत्ता पर क़ाबिज़ होने का टोटका मानते हैं, चुनाव में विजय प्राप्ति रथ यात्रा के परंपरा की शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने की थी। वर्ष 1987 में उन्होंने कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए ‘क्रांति रथ’ निकाला था, तब भी इसकी शुरुआत कानपुर से हुई थी। मुलायम सिंह यादव ने अपने ‘क्रांति रथ’ की शुरुआत कानपुर देहात के झींझक में रैली करने के बाद दूसरी रैली उन्होंने मैनपुरी में की थी और इसके बाद 1989 के चुनाव में मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इसी रास्ते चलते हुए अखिलेश यादव ने 2011 में अपने पिता मुलायम के ही अंदाज़ में ‘क्रांति रथ’ निकाला वह भी कानपुर से शुरुआत करके पूरे प्रदेश में घूमे तथा वर्ष 2012 के चुनाव में पूर्ण बहुमत से सपा की सरकार प्रदेश में आयी थी और अखिलेश पहली बार मुख्यमंत्री बने।

विधानसभा चुनाव 2017 में मोदी के आगे फेल हो गया अखिलेश का रथ

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के लहर के सामने अखिलेश यादव की करारी शिकस्त हुई थी, कांग्रेस से गठजोड़ के बाद भी दोनों को मिलाकर कुल 52 सीटें ही मिल पाई थी, उस समय सपा का यह टोटका काम नही आया। अब देखना यह है कि इस बार समाजवादी पार्टी के वापसी का यह टोटका कहा तक रास आता है।

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