आदित्य कुमार दीक्षित
द चेतक न्यूज
बलिया, उत्तर प्रदेश : वर्ष 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ चले वृहद आन्दोलन अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में आजाद हुए देश के तीन जिलों में से एक उत्तर प्रदेश का बलिया जिला गुरुवार 19 जुलाई को अपनी आजादी की 79वीं वर्षगांठ मना रहा है।
बलिया में आजादी का जश्न मनाने की यह परम्परा बहुत पुरानी है, बात तब की है जब महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की आग में पूरा जिला जल रहा था, जनाक्रोश चरम पर था, जगह- जगह थाने जलाये जा रहे थे, सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था, रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी। उस दौरान जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया था, लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था और 19 अगस्त 1942 को लोग अपने घरों से सड़क पर निकल पड़े थे, जिले के ग्रामीण इलाके से शहर की ओर आने वाली हर सड़कों पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था, गांवों से भारी भीड़ शहर की ओर बढ़ रही थी, जैसे ही यह सूचना अंग्रेजी प्रशासन को मिली उसके होश उड़ गए। अफसरों ने अपने परिवार को पुलिसलाइन में सुरक्षित कर दिया था। उस दौरान के तत्कालीन कलेक्टर जे.निगम जिला कारागार पहुंचे तथा जेल में बंद आंदोलन के नेताओं को रिहा करते हुए भीड़ का आक्रोश शांत करने का निवेदन किया था।
जेल में बंद आंदोलन के नेता बाहर निकले और महान क्रांतिकारी चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में भीड़ टाउनहाल के मैदान में पहुंची थी तथा वहीं बलिया के आजाद होने की घोषणा हुई थी। चित्तू पाण्डेय आजाद बलिया के पहले कलेक्टर तथा राम दहिन ओझा पुलिस अधीक्षक घोषित किए गए थे। 79 वर्ष पहले 19 अगस्त 1942 को घटी उस घटना को आज भी बलियावासी परम्परागत ढंग से आजादी के जश्न के रूप में मनाते हैं और जिलाधिकारी के नेतृत्व में जिला जेल से बाहर निकल कर बलिया के लोग उन अमर शहीदों के प्रतिमाओं पर जाकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
जनकवि पं. जगदीश ओझा सुन्दर ने इस घटना को अपनी कविता में रेखांकित करते हुए कहा था…
“भारत छोड़ो के नारे की, बलिया इक अमिट निशानी है।
जर्जर तन बूढ़े भारत की, यही मस्ती भरी जवानी है।”