पडरौना तहसील में कार्यरत फर्जी कानूनगो का मामला
फर्जी कानूनगो के मामले को लीपापोती करने के लिए खेला गया मैनेज का खेल
द चेतक न्यूज
कुशीनगर : राजस्व विभाग में फर्जीवाड़ा के जरिये सरकारी नौकरी हथियाने वाले कानूनगो मदन मिश्रा को बचाने के चक्कर मे तहसील प्रशासन खुद अपने जांच रिपोर्ट मे फंसते नजर आ रहे है। मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर की गई शिकायत की जांच कर रहे तहसीलदार ने अपने रिपोर्ट मे लिखा है कि मदन मिश्रा के सेवा संबंधित अभिलेख पडरौना तहसील मे उपलब्ध नही है, जिसके वजह से उनके संबंध मे सेवा संबंधित विवरण पडरौना तहसील से दिया जाना संभव नही है। शायद तहसीलदार साहब यह भूल गये है कि उन्हें आरटीआई का जबाव नही देना है बल्कि जनसुनवाई पोर्टल पर अपनी जांच आख्या प्रस्तुत करना है। पोर्टल पर अपलोड किये गये तहसीलदार की यह गैर जिम्मेदाराना रिपोर्ट इस ओर इशारा कर रही है कि मामले को लीपापोती करने के लिए मैनेज का खेल खेला गया है।
विदित है कि मदन मिश्रा द्वारा फर्जी नियुक्ति पत्र के सहारे सरकारी नौकरी हथियाने का मामला मीडिया द्वारा विगत एक माह से लगातार उठायी जा रही है। विभागीय जानकार बताते है कि मदन मिश्रा ने नियुक्ति प्रक्रिया की कोई भी औपचारिकताएं पूरी नही किये है। मतलब यह कि मदन मिश्रा जब लेखपाल बने थे उस समय न तो उन्होंने कोई आवेदन किया था, न ही लिखित व मौखिक कोई परीक्षा दिये थे, न ही मेरिट लिस्ट मे आये और न ही चयन समिति द्वारा चयनित हुए। सीधे नियुक्ति पत्र हथियाकर मिर्जापुर मे ज्वाइन कर लिया। विभागीय सूत्रो का दावा है कि मदन मिश्रा का नियुक्ति पत्र जांच हो जाये तो दुध का दुध और पानी का पानी साफ हो जाएगा। कहना ना होगा कि 29 अक्टूबर को पत्रकार विष्णु श्रीवास्तव ने शिकायत संख्या – 40018922021945 जरिए मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर फर्जी नियुक्ति पत्र के जरिए फर्जीवाड़ा कर लेखपाल से कानूनगो बने मदन मिश्रा के खिलाफ शिकायत की थी। मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर की गई शिकायत के बाद इस प्रकरण की जांच शासन स्तर से तहसीलदार पडरौना को सौपी गयी। इसकी जानकारी जब कानूनगो मदन मिश्रा को हुआ तो वह अपनी नौकरी बचाने व रिटायर्मेंट के बाद पेंशन सहित अन्य लाभ पाने की गरज से एक रसूखदार लेखपाल के माध्यम मे जांच अधिकारी को धन लक्ष्मी का चढावा चढाने के लिए परिक्रमा शुरू कर दिया। इसके बाद से मदन मिश्रा के फर्जीवाड़े की जांच को लीपापोती करने की कवायद तहसील प्रशासन द्वारा शुरू हो गयी। नतीजतन इस प्रकरण की जांच कर रहे जांच अधिकारी ने कानूनगो को बचाने की गरज से 14 नवम्बर को मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर लीपापोती जांच रिपोर्ट अपलोड कर दिया।
जनसुनवाई पोर्टल पर अपलोड जांच अधिकारी की रिपोर्ट
कानूनगो मदन मिश्रा की फर्जी नियुक्ति व प्रमाणपत्रो की जांच कर रहे पडरौना तहसील प्रशासन ने मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर जो रिपोर्ट अपलोड किया है उस रिपोर्ट मे लिखा है कि श्री मदन मिश्रा राजस्व निरीक्षक के पद पर पडरौना तहसील मे दिनांक – 11 मई-2022 से कार्यरत है। इसके पूर्व श्री मिश्र अन्य तहसीलो मे लेखपाल के पद पर कार्यरत रहे है। रिपोर्ट मे आगे लिखा है कि तहसील पडरौना मे लेखपाल के पद पर नियुक्त नही हुई है और न ही कभी कार्यरत रहे है। इनके सेवा संबंधित अभिलेख तहसील पडरौना उपलब्ध नही है जिसके कारण श्री मिश्र के संबंध मे सेवा संबंधित विवरण तहसील पडरौना से दिया जाना संभव नही है। अब सवाल यह है कि तहसील प्रशासन आरटीआई का जबाब दिया है या मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर किये गये शिकायत की जांच रिपोर्ट? जानकर बताते है कि जब किसी व्यक्ति की सरकारी नौकरी मे चयन होता है तो सर्वप्रथम चयन प्रमाण पत्र मिलता है फिर सरकारी कर्मचारी की जब नियुक्ति होती है तो उसे नियुक्ति पत्र दिया जाता है उसके बाद उस कर्मचारी की जहां पहली पोस्टिंग होती है वहा कार्यभार ग्रहण करने का पत्र दिया जाता है। इसके बाद उस कर्मचारी की ज्वाइनिंग होती है। फिर कुछ माह बाद उस कर्मचारी का सर्विसबुक बनता है और वह सर्विसबुक जहां-जहा उस कर्मचारी का स्थानांतरण होता है वहा-वहा साथ जाता है। ऐसे सवाल उठना लाजमी है कि मदन मिश्रा का चयन पत्र, नियुक्ति पत्र और सर्विसबुक, जो मदन मिश्रा व विभाग के पास होनी चाहिए वह कहा है? जानकर तो यह भी कहते है कि इस प्रकरण मे जांच अधिकारी मदन मिश्रा से नियुक्ति प्रमाण पत्र व चयन पत्र की छायाप्रति मांगकर मिर्जापुर जहां पहली पोस्टिंग हुई थी व राजस्व परिषद से वैरीफिकेशन कराकर दूध का दूध पानी का पानी कर सकते थे फिर उन्होंने ऐसा क्यो नही किया?
ऐसे ही मामले मे डीआईओएस ने करायी थी जांच
बताया जाता है कि परिचारक मनोज कुमार का स्थानांतरण जुलाई माह मे जनपद के हाटा क्षेत्र के राजकीय इंटरमीडिएट कालेज मे हुआ था। स्थानांतरण पत्र के आधार पर स्कूल मे कार्यभार ग्रहण किया था। उसके कार्यभार ग्रहण प्रमाण पत्र व एलपीसी के आधार पर उसे दो महीने का वेतन भी जारी किया गया। इस दौरान उसकी नियुक्ति पर संदेह होने के कारण डीआईओएस कुशीनगर रवीन्द्र सिंह ने एक अक्तूबर को संयुक्त शिक्षा निदेशक कानपुर को पत्र लिखकर परिचारक मनोज के नियुक्ति पत्र व कार्यभार ग्रहण से संबंधित अभिलेखों को उपलब्ध कराने की मांग की। जिसके बाद यह खुलासा हुआ कि अभिलेख के अनुसार मनोज कुमार की नियुक्ति कार्यालय व संस्था द्वारा नहीं की गयी है। इसके बाद डीआईओएस ने परिचारक को बर्खास्त कर उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया था।