“शशिकांत मिश्रा” : भारत सरकार ने 1980 के दशक में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए सोवियत रूस के साथ मिलकर एक अंतरिक्ष अभियान की योजना बनाई थी जिसमे एक भारतीय को भी शामिल करने का निर्यण लिया गया था। भारत की तरफ से इस मिशन के लिए दो लोगो का चयन किया गया जिसमे राकेश शर्मा और दूसरे रवीश मल्होत्रा थे चयन प्रकिया अत्यंत जटिल व कठिन थी जिसमे तय मानक पर बस दो लोग ही उपयुक्त पाये गए।
अंतरिक्ष अभियान के लिए भारत की तरफ से दो लोगो का चयन तो हो गया था लेकिन एक व्यक्ति को ही यह अवसर मिलने वाला था। अंत मे वो समय आ ही गया जब 20 सितंबर 1982 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के माध्यम से इंसरकॉस्मोस अभियान के लिए राकेश शर्मा के नाम पर अंतिम मुहर लग गई। किसी भी विपरीत परिस्थितियों में विकल्प के तौर पर रवीश मल्होत्रा को तैयार किया गया लेकिन इसकी जरूरत नही पड़ी।
राकेश शर्मा को मिशन के दौरान कई चुनौतीयों का सामना करना पड़ा था
उन्हें 72 घंटे यानी पूरे तीन दिन तक एक बंद कमरे में एकदम अकेले रहना पड़ा था। सबसे दुःखद पल मिशन के लिए चयन के बाद जब वह अभियान हेतु परीक्षण के लिए रूस के यूरी गागरिन अंतरिक्ष केंद्र में गहन अभ्यास में जुटे थे, तभी देश में उनकी छह वर्षीय बेटी मानसी का निधन हो गया था यह राकेश शर्मा के लिए बहुत दुःखद पल था इस हृदयविदारक घटना से भी वह विचलित नहीं हुए,और उन्होंने स्वयं को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा। पूरे देश की आशाएं उनसे जुड़ी हुई थीं,राकेश शर्मा ने देश की उम्मीदों को कभी टूटने नहीं दिया।
1984 में जब भरी थी उड़ान
राकेश शर्मा अपने तीन अन्य सोवियत साथियों को 02 अप्रैल, 1984 को अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरनी थी। तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर से उनके सोयुज टी-11 अंतरिक्षयान के उड़ान भरते ही देश के लोगों की धड़कनें बढ़ गईं। राकेश शर्मा अपने तीन अन्य सहयोगियों के साथ आखिरकार अंतरिक्ष में दाखिल हो गए उन्होंने कुल सात दिन, 21 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में बिताए इसके साथ मिशन पूरा कर सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौटे।
अंतरिक्ष मे किया था 33 से ज्यादा प्रयोग
राकेश शर्मा अपने अंतरिक्ष प्रवास के दौरान कुल 33 प्रयोग किए। इनमें भारहीनता से उत्पन्न होने वाले प्रभाव से निपटने के लिए किया गया प्रयोग भी शामिल था। राकेश शर्मा और उनके तीन अन्य साथियों ने स्पेस स्टेशन से मॉस्को और नई दिल्ली के लिए एक साझा संवाददाता सम्मेलन को भी संबोधित किया। कहा जाता है कि स्पेस स्टेशन में भी राकेश शर्मा हर दिन योग किया करते थे। उन्होंने अंतरिक्ष से ही उत्तर भारत के कुछ इलाकों को अपने कैमरे में कैद किया।
भारत सरकार ने ‘अशोक चक्र’ से किया था सम्मानित
राकेश शर्मा भारत के प्रथम और विश्व के 138वें अंतरिक्ष यात्री थे। राकेश शर्मा उस वक्त भारतीयों के लिए प्रेरणा बन गए उनके कार्य को देखते हुए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिसमें उनकी उपलब्धि से प्रेरित होकर ही भारत सरकार ने उन्हें ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। साथ ही सोवियत सरकार ने भी उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ सम्मान से नवाजा। राकेश शर्मा भारतीय वायुसेना में विंग कमांडर के पद तक पहुँचे। विंग कमांडर के पद पर सेवानिवृत्त होने पर राकेश शर्मा ने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में परीक्षण विमान चालक के रूप में भी कार्य किया था।
पंजाब के पटियाला से अंतरिक्ष तक का सफर
राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1949 पंजाब के पटियाला में एक मध्यमवर्गीय परिवार मे हुआ था। राकेश शर्मा बचपन से ही आकाश की ओर टकटकी लगाए रहते थे। बचपन से ही आकाश उनके लिए आकर्षण का केंद्र रहा यही आकर्षण उन्हें भारतीय वायुसेना में ले आया। वर्ष 1966 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) का हिस्सा बने और राकेश शर्मा का 1970 में ही भारतीय वायुसेना से जुड़ाव हो गया। इस प्रकार मात्र 21 साल की उम्र में राकेश शर्मा भारतीय वायु सेना के पायलट बन गए। जब वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हो रहा था उस वक्त देश उनकी प्रतिभा और कौशल से परिचित हुआ। इसके बाद वह सफलता की सीढियां चढ़ते गए और कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
विश्व मे भारत का बढ़ाया गौरव
राकेश शर्मा के बाद भारत के अन्य कई लोगो ने भी अंतरिक्ष का सफर किया जिसमें कल्पना चावला से लेकर सुनीता विलियम्स जैसे भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों के नाम उभरे, जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अभियानों का हिस्सा बने लेकिन अंतरिक्ष के सफर में जब भी नाम लिया जाएगा अंतरिक्ष को लेकर भारतीयों के जेहन में हमेशा जो पहला नाम उभरेगा, वह राकेश शर्मा का ही होगा जो भारत ले लिए गर्व की बात है।