पुस्तक की समीक्षा करते आलोक कुमार चौरसिया जी।
टीम द चेतक न्यूज : दर्द की भूमि बड़ी उर्वरा होती है, और इसमें खिले फूलों की महक सदियों-सदियों वायुमंडल को सुवासित करती रहती है। ऐसी ही दर्द की जमीन पर 2019 में कुछ ऐसे पुष्प खिले जो पीड़ा का इतिहास बन गये।
कोरोना नामक महामारी ने भारत में अवांछित मौतों, रिश्तों की स्वार्थपरता, रोजगारों के छूटने और सैकड़ों-हजारों किलोमीटर तक पैदल पलायन करते प्रवासी मजदूरों के रूप में दुनिया को पीड़ा का एक ऐसा है इंद्रधनुष दिया जो सैकड़ों साल तक अदृश्य रहकर भी विश्व आकाश पर अपनी शख्सियत की बुरी स्मृतियां दिलाता रहेगा। आज मैंने ‘पलायन पीड़ा प्रेरणा’ को पढ़ा, किताब को पढ़ते वक्त मेरे आंखों में आंसू आ गयें, बहुत ही मार्मिक एवं सच्ची घटनाओं का वर्णन मयंक पाण्डेय ने किया हैं!आप सबको इसे जरूर पढ़ना चाहिए।
इस किताब में लेखक ने ‘ अनकहे भारत’ की 50 सच्ची घटनाओं के बारे में बताया है, जो हमारे सामने होकर भी हमें स्पष्ट नहीं दिखती! 2020 के शुरुआत में वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी का आगमन हुआ और मार्च आते- आते इसने भारत में अपनी भयावहता दिखानी शुरू कर दी! अप्रैल महीने में टीवी, समाचारपत्र, सोशलमीडिया पर लाक डाउन के नियम, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क के प्रयोग और पलायन की खबरें चल रही थीं, सिर पर गठरी लिए पत्नी और बच्चों के साथ सड़कों पर चल रहें मजदूरों की खबरों और तस्वीरों ने पूरे देश को झकझोर दिया!
मजदूर भूखे- प्यासे नंगे पाव ही अपने -अपने गाँव चल दिए थे, उनके संघर्ष के हम सभी साक्षी हैं, हम सभी ने भारत- पाकिस्तान बटवारें का विस्थापन तो नहीं देखा हैं परंतु लाक डाउन के दृश्य ठीक वैसे ही प्रतीत हो रहें थे! इतिहास गवाह है कि विस्थापन और पलायन ने हमेशा एक नये वर्ग को जन्म दिया है, चलायमान संघर्ष के समूह में चल रहे लोगों के व्यक्तित्व और व्यवहार दोनों में सकारात्मक बदलाव किया हैं, सड़को पर संघर्षरत परिवार, वर्ग या व्यक्ति इस दौरान जिंदगी के यथार्थ, परिश्रम के महत्व और रिश्तों की महत्ता को बखूबी समझा है, ये ही संघर्ष उसके व्यक्तित्व में ऐसे बदलाव लाते हैं जिसके दूरगामी परिणाम होतें हैं, हालांकि भारत में कोरोना काल में हो रहा पलायन क्षणिक था परंतु पलायन जनित पीड़ा मजदूरों के जेहन में हमेशा रहेगी और इसके दूरगामी परिणाम आने वाले वर्षों में अवश्य दिखेंगे!
सड़क पर ही साड़ी का घेरा बनाकर एक अस्थायी अस्पताल में पलायन करती एक मजदूर औरत का बच्चे को जन्म देना, या गोद में शिशु को लेकर पलायन के दौरान मरे पति के पुतले का अंतिम संस्कार करना आदि ऐसी कहानियां हैं इस संग्रह में जो पाठकों की संवेदना को सक्रिय करती ही हैं, सदियों तक कोरोना काल के दर्द को भी याद दिलाती रहेंगी। साजिद मियां अगर हिंदू दोस्त की बेटी का कन्यादान करें, और लॉकडाउन की बंदिशों के कारण दुल्हन ही बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंचे तो….. तो ये दोनों विषय ही रोमांच और पठनीयता पैदा करते हैं। पलायन-पीड़ा-प्रेरणा पुस्तक में इन दो कहानियों को बड़ी-ही पठनीय शैली में प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त क्षमा की जाने वाली चोरियां, राष्ट्रस्तर के खिलाड़़ियों की आर्थिक दुर्दशा, किन्नरों द्वारा लॉकडाउन में एक नयी भूमिका अपनाने को बहुत-ही बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
किताब के दूसरे भाग में प्रेरणा स्वरूप सोनू सुद, विश्व के महान शेफ विकास खन्ना, टाटा समूह और ब्यूरोक्रेट द्वारा किए मानवतापूर्ण कार्यों का उल्लेख है। सबसे रोचक विकास खन्ना का व्यक्तिगत संघर्ष है। उनकी अमृतसर से न्यूयॉर्क तक की जीवनी है। मयंक पांडेय के लेखन की विशेषता यह है कि इन्होंने पैराणिक और धार्मिक चरित्रों को कहानियों में नये रिफरेंस के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक ने अपनी शैली को आम पाठक के लिए सहज और ग्राह्य रखने की ही कोशिश की है।
लाक डाउन के दौरान सामने आती हर घटना के पीछे एक ऐसी अनूठी दास्तान हैं जो हम सभी को बहुत कुछ सोचने को विवश करती हैं! इन विभिन्न घटनाओं में दर्द का अनुभव तो है ही साथ में आशा का किरण भी हैं।इस काल ने हम सभी को प्रभावित किया हैं, हम सबने इस समय बहुत कुछ सहा हैं, सभी की जिंदगी में इसने व्यापक बदलाव किये हैं जो सदियों तक याद किये जायेंगे! इस किताब के माध्यम से हम सभी की जिंदगी को प्रभावित करती उस पीड़ा के इन्द्रधनुष को लेखक ने हम सभी के सामने लाने का प्रयास किया हैं, प्रत्यक्ष रूप से न सही, परोक्ष रुप से हम सभी अपने आप को उन किरदारों में शामिल पाते हैं!
पलायन-पीड़ा-प्रेरणा पुस्तक के लेखक- मयंक पाण्डेय IRS है।
पुस्तक : पलायन-पीड़ा-प्रेरणा के लेखक-मयंक पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। इन्होंने गोरखपुर से बीएससी व एलएलबी किया और दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलएम किया। एक मेधावी छात्र की तरह इन्होंने एलएलबी और एलएलएम दोनों मे विश्वविद्यालय टॉप किया। अपने प्रथम प्रयास में ही इन्होंने बिहार न्यायिक सेवा में सफलता प्राप्त की और वर्ष 2009 में ये भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में चयनित हुए। वर्तमान में ये गुजरात के सूरत में आयकर विभाग,में ज्वॉइंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं। इनके लेख और कहानियां समय-समय पर विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल,समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। ‘पलायन पीड़ा प्रेरणा’ हिन्दी साहित्य में इनका प्रथम प्रयास है।.
पलायन-पीड़ा-प्रेरणा पुस्तक अमेजन पर है उपलब्ध।
पुस्तक का प्रकाशन- प्रलेख प्रकाशन प्रा. लि. ने किया है, आप इस पुस्तक को मूल्य:- 250/- देकर अमेजन से खरीद सकते है।
अमेज़न का लिंक : https://lnkd.in/g86s53P
(पलायन-पीड़ा-प्रेरणा इस किताब की समीक्षा आलोक कुमार चौरसिया जी द्वारा किया गया है आलोक कुमार चौरसिया जी कुशीनगर जिले के रामकोला विकासखण्ड अंतर्गत कठघरही के निवासी हैं। इन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर से एवं LL.B(Hons.) एवं LL.M की पढ़ाई काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से किया हैं! आलोक कुमार चौरसिया,विधि विषय से JRF के साथ ही एक फ्रीलांसर भी है।)