एक रिपोर्ट के अनुसार 52% बच्चियां जिनकी शादियां 18 वर्ष के बाद हुई वह हायर एजुकेशन में जा पाई और हायर सेकेंडरी की अपनी पढ़ाई को कम से कम पूरा कर पाई. जबकि जिन बच्चियों की शादी 18 वर्ष से पहले हुई उनमें से केवल 20% के आसपास हायर सेकेंडरी की पढ़ाई को पूरा कर पाई.
नजरिया : बाल विवाह संशोधन बिल (2021) के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने देश की बेटियों के भविष्य को एक नई राह देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है, जिसके आशातीत परिणाम निसंदेह भविष्य में दृष्टिगोचर होंगे. वंही हम सरकार के इस निर्णय के आंकलन की बात करें तो यह उस सपने को साकार करने की दिशा में उठाया गया कदम है जो महात्मा गांधी ने देश की बेटियों और आदर्श देश के लिए संजोया था.
अगर आज हम विश्व में विकसित देशों की बात करें तो उनमें प्रमुखता से वही देश शुमार है जहां पर बेटियों के विकास को तवज्जों दिया गया और उन्हें देश के विकास की धारा में बराबरी का हक और अवसर प्रदान किए गए. इतिहास साक्षी है कि जिस भी समाज में महिला और पुरूष समान अधिकार और अवसरों का लाभ ले रहे हैं, वह विकास की दिशा में विलक्षण है. सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम भी एक ऐसे ही समाज और देश को स्थापित करने की दिशा में है, जहां सभी समानता से नवीन भारत के निर्माण में अपना सहयोग दे सके.
उल्लेखनीय है कि हमारा संविधान लिंग के आधार पर भेद नहीं करता, किंतु जब विवाह की बात आती है, इसमें किसी न किसी रूप सरकार के इस फैसले से पूर्व में भेद स्थापित होता था और समानता का अधिकार प्रभावित होता था. किंतु अब सरकार द्वारा महिलाओं के लिए भी विवाह की उम्र 21 वर्ष कर दिए जाने के प्रस्ताव के अमल में आने के बाद से वह पुरूषों के समक्ष आ जाएगी और पहले कम उम्र में विवाह से जिन अवसरों से महिलाएं वंचित रह जाती थी. आज वह समान अवसरों का लाभ लेकर पुरुषों की भांति समाज के विकास में अपना बराबरी का योगदान दे पाएंगी.
गांधी जी ने बहुत ही विशेष तौर पर कहा कि यदि बाल विवाह जैसी कुरीतियां समाज में है तो वह स्वराज नहीं है, खास तौर पर लड़कियों के लिए स्वराज बिल्कुल नहीं है. इस विषय़ की महत्ता को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद लड़कियों को स्वराज देने का यह महत्वपूर्ण कार्य किया है.
विवाह की आयु की बात करें तो महात्मा गांधी का मानना था कि 25 साल की आयु से पहले होने वाली शादियां एक तरह से नाबालिगी में है और कम समझ के साथ की गई शादियां है. बाल विवाह से उत्पन्न चुनौतियों पर उन्होंने बहुत ही स्पष्ट तरीके से 26 अगस्त 1926 के यंग इंडिया के एक आर्टिकल के माध्यम से लिखा कि कैसे देश में बाल विवाह के चलते कमजोर बच्चे जन्म ले रहे हैं और देश की एक पीढ़ी इस तरीके से हम लोग तैयार कर रहे हैं, जो कि दुनिया के सामने मुकाबला करने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम नहीं मानी जाएगी.
पिछली सरकारों की दूरदर्शिता में कमी का ही यह नतीजा रहा कि जिस स्वप्न को गांधी जी ने आजादी के पूर्व देखा था, उसे साकार करने में दिलचस्पी नहीं ली. जिसके कारण आज वास्तविकता में वह सभी समस्याएं गंभीर रूप ले चुकी हैं, जिनके गांधी जी ने पहले ही संकेत दिए थे. किंतु विवाह की आयु संबंधी इस नए बिल से अब इन समस्याओं के समाधान की राह खुली है.
बाल विवाह का बच्चों पर असर की बात करें तो वह एक दुश्चक्र की तरह है, जिसको हम इस तरीके से व्यक्त कर सकते हैं कि गरीबी के चलते बाल विवाह होता है और आगे वह गरीबी को जन्म भी देता है. एक बच्ची जिसकी 16-17 साल की उम्र में शादी हुई, वह जब यह व्यक्त करती है कि उसको घर से ज्यादा काम ससुराल में करना पड़ता है तो एक तरीके से हम चाइल्ड लेबर को बढ़ावा देने का काम करते हैं. जब हम 100 जिलों का ड़ाटा देखते हैं, जहां पर चाइल्ड मैरिज की संख्या ज्यादा है, तो उन जिलों में हम पाएंगे कि वहां पर सीजनल माइग्रेशन करने वाली जनसंख्या भी है, यानी कि अगर बाल विवाह होता है तो वह असुरक्षित माइग्रेशन को भी जन्म दे सकता है.
हालांकि यह एक शोध का विषय है. निश्चत रूप से बाल विवाह के साथ ही समस्या भी पैदा होती है कि आय का साधन बढ़ाना पड़ेगा और जब स्किल्ड पॉपुलेशन नहीं होती है, वह एजुकेटेड नहीं होते जिस उम्र में उनका विवाह हो जाता है तो निश्चित रूप से उन्हें अनऑर्गेनाइज सेक्टर और अनरेगुलेटेड सेक्टर में बाल मजदूरी के लिए जाना पड़ता है. यह कुछ ऐसी चिंताए हैं, जिनका समाधान मोदी सरकार के इस निर्णय से निसंदेह निकल पाएगा.
उल्लेखनीय है की भारतीय संस्कृति विलक्षण है और बदलाव की आवश्यकता को सभ्यता स्वीकार करती है. उदाहरण के रूप में एक रिपोर्ट के अनुसार 52% बच्चियां जिनकी शादियां 18 वर्ष के बाद हुई वह हायर एजुकेशन में जा पाई और हायर सेकेंडरी की अपनी पढ़ाई को कम से कम पूरा कर पाई. जबकि जिन बच्चियों की शादी 18 वर्ष से पहले हुई उनमें से केवल 20% के आसपास हायर सेकेंडरी की पढ़ाई को पूरा कर पाई.
यहां पर जो आंकड़ा व्यक्त करने का सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में कानून मानने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है, जिसका लाभ निश्चित ही महिलाओं के विकास में दृष्टिगोचर हुआ है. साथ ही इससे यह पता चलता है कि हमारी संस्कृति विकास के मार्ग का अनुसरण करने के लिए सर्वथा तैयार है और आगे भी विकास से जुड़े नियम कानूनों को हमारे समाज में स्वीकारिता मिलती रहेगी.
अतः इस कानून के जरिए विवाह की आयु बढ़ाने से महिलाओं में शिक्षा और नवाचार की संभावनाएं बढेंगी और जिन बच्चियों का विवाह 18 वर्ष या उससे पूर्व ही कर दिया जाता था अब वह भी उच्च शिक्षा की ओर बढ सकेंगी. इस कानून के बाद निश्चित रूप लड़कियों को कुछ ज्यादा अच्छे अवसर मिल सकेंगे और अपने विकास के अवसरों का अनुसरण कर देश के विकास को गति देने में सक्षम हो पाएंगी. यह नए भारत के निर्माण में जुड़ने वाला नया आयाम है जिससे हमारी संस्कृति की विलक्षणता और भी पुष्ट होगी.
( लेखक प्रियंक कानूनगो जी राष्ट्रीय बाल अधिकार सरंक्षण आयोग (NCPCR) भारत के अध्यक्ष है। यह लेखक के निजी विचार है। )